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नैनीताल :::- प्रमुख सचिव वन द्वारा दाखिल शपथ पत्र में माननीय उच्च न्यायालय को अवगत कराया गया कि पूरे सूबे मे मानव वन्यजीव संघर्ष से निपटने के लिए वर्तमान मे वन विभाग में केवल 08 डॉक्टर तैनात हैं, वह भी केवल जिला देहरादून, नैनीताल एवं हरिद्वार में।

2. बढ़ते मानव वन्यजीव संघर्ष के चलते समाज सेवी और पौड़ी गढ़वाल निवासी अनु पंत द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए, आज उच्च न्यायालय ने प्रमुख सचिव वन आर.के सुधांशु की व्यक्तिगत उपस्थिति में, विस्तृत दिशा निर्देश राज्य सरकार और उत्तराखंड वन विभाग को पारित किए हैं।
3. गौरतलब हे कि पूर्व में अपने 21.11.2022 के आदेश में, मानिन्य उच्च न्यायालय ने शासन से पूछा था कि मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक द्वारा जारी किए गए इस्थाई आदेश दिनांक 27.07.2022 का बिंदुवाद अनुपालन उच्च न्यायालय को अवगत कराएं। इसपर जब कोई करवाही नहीं की गई, तब माननीय उच्च न्यायालय ने सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए प्रमुख सचिव वन को आज की तिथि में व्यक्तिगत रूप से पेश होकर अपना शपथ पत्र दाखिल करने को कहा था।
4 व्यक्तिगत रूप से पेश हुए प्रमुख सचिव वन आर.के सुधांशु द्वारा दाखिल अपने शपथ पत्र में यह कहा गया कि सरकार की ओर से मानव वन्यजीव शाघर्ष से निपटने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता अभिजय नेगी ने सरकार के द्वारा दाखिल शपथ पत्र से ही माननीय उच्च न्यायालय को अवगत कराया गया कि आज भी दर्जनों मुआवजे की फरयादें, शासन स्तर पर वर्ष 2015 से लंबित हैं, जो मानव वन्यजीव संघर्ष के शिकार हुए हैं, पर सरकार ने अभी तक कई ऐसे पात्र लोगों को मुआवजा नहीं दिया है। इस पर उच्च न्यायालय ने सरकार से शीघर्तः सभी मुआवजा के आवेदकों को उनकी योग्यता अनुसार मुआवजा देने को कहा है। याचिका अधिवक्ता की ओर से ये भी माननीय उच्च न्यायलय को बताया गया कि एक ओर सरकार द्वारा दस्तावेज शपथ पत्र में पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, उत्तरकाशी, पौड़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग को मानव वन्य जीव संघर्ष का हॉटस्पॉट कहा गया है, वही दूसरी ओर, इन सभी जिलो समेत सभी पर्वतीय दस जिलो में एक भी वेटरनरी डॉक्टर मानव वन्य जीव संघर्ष से निपटने के लिए तैनात नहीं है, जब की बाघ और गुलदार से निपटने के लिए भारत सरकार के मनाको अनुसार, इमरजेंसी रिस्पांस टीम में वेटरनरी डॉक्टर्स का होना अनिवर्या है।
माननीय उच्च न्यायालय को, प्रमुख सचिव वान आर. के. सुधांशु ने इस पर बताया की अवश्यकता अनुसार वेटरनरी डॉक्टर को जहां जरूरत पड़ती है वहा बुला दिया जाता है। उच्च न्यायालय ने नाराजगी व्यक्त करते हुए माननीय उच्च न्यायालय ने प्रमुख सचिव वन को निर्देशित किया कि वहा जिले वार वन विभाग की एक सोची तैयारी कर वन विभाग की वेबसाइट पर अपलोड करें कि कौन से विशेषग्य/पशु चिकित्सक किस किस जिले में उपलब्ध है और हर जिले में इनकी तत्काल उप्लब्धता सुनीश्चित कारि जाये|
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिजय नेगी के तर्क को स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय ने सुधांशु से बाघ, गुलदार, हाथी, भालू के लिए एक नहीं, अलग अलग SOP बनाने के निर्देश दिए।
याचिकर्ता की ओर से अभिजय नेगी ने मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक द्वारा जारी किए गए स्थायी आदेश की बिंदु 10 के ऊपर भी पैरवी की गई जिसपर कहा गया कि मानव वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए जंगली जानवरों के लिए भी कॉरिडोर निर्मित और जो वर्तमान मैं प्रभावी हैं, उन्हें सुरक्षित और खंडित होने से बचाने की कोशिश की जानी चाहिए। इसपर भी माननीय उच्च न्यायालय ने प्रमुख वन सचिव आर.के शीधांशु से कहा कि वह इन कॉरिडोर को सुरक्षित रखें और इनकी एक सूची और उपलब्धता माननीय उच्च न्यायालय को अपने अगले शपथ पत्र मैं बताएं। अगली सुनवाई में प्रमुख सचिव वन को वर्चुअली जुड़ने के निर्देश देते हुए, और याचिकाकर्ता को सरकार के शपथ पत्र का प्रति शपथ पत्र दाखिल करने के लिए कहते हुए, माननीय उच्च न्यायालय ने 17.08.2023 की तिथि नियत की है।

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